Saturday, 13 August 2016

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  आज भी मैं वहीं राह पर हूँ
  वहीं यकीन वहीं इन्तज़ार है
     दुनिया बदल चुकी है
पर तेरे प्रितम के चेहरे की प्रित वही है


  समझ मैं नहीं आता है
क्या बुरा किया मैंने हे शशि! तुम्हारा
वो झगमग उजाला वो प्रिया की प्रित
और उसकी महकती आँखों का साथ
 और वो चाँदनी में जुल्फों की छाव
    नहीं भूल पाता हूँ.....
   बस.... वही याद करता हूँ


  चाहता नहीं घाव हरे करना
इसलिए दिनकर के प्रकाश में रहता हूं
  दर्पण फेंक देना चाहता हूँ
  पर फेंक न पाता हूँ
 कहीं दिख न जाये वो दिन
वो चेहरा, वह प्यार भरा संसार


अब नैन चेहरे पर नहीं अटकते है
 जलने से अब हाथ भी डरते हैं 
 विश्व परिवर्तन के साथ ही 
  ह्रदय भी मेरा बदल जाये 
यहीं आशा लिए ईश चरण पड़ा हूँ 
दर्द सहने की हिम्मत न रही 
प्राण देने को पीछे पड़ा हूँ। 


  क्यों ये दिन वापिस आया 
क्यों प्रित को पुनः संजीवन पिलाया 
रोशनी आयी, पहले क्या कम थी? 
 और अब अन्धा क्यों बनाया 


अब हे शशि! तु चला जा 
बुरी नजर न प्रित को लगा 
तेरा प्रिय तेरी राह देख रहा है 
विश्व सो रहा है, तु भी सो जा। 


मैं अब न प्रित गले लगाऊगाँ
 विश्वास कर के देख मेरा 
मैं वापस न जलने जाऊगाँ 
अब आग को गले न लगाऊगाँ।।।