Thursday, 29 September 2016

मेला

पिताजी क्या देखने गये होगें?
  मन ही मन बहुत रोए होगें
  उन खिलौनों को देख के,
मेरी याद तो बहुत आयी होगी
एक बार तो आँखें भर आयी होगी
रोकते-रोकते(अपने दोस्तों के साथ)
मोतियों की सेज निकल आयी होगी
माँ को भी मिठाई कहाँ भायी होगी?
 बेटी ने कहने पर जबरन खाई होगी


पति के साथ देख सखियों को
मन उसका भी मचल आया होगा
प्रीतम का चेहरा ही याद आया होगा
   आज तो होते वो मेरे साथ
  सोचते सोचते जी भर आया होगा
   पर आंसू एक न लाया होगा
  दौड़ पड़ी होगी बिस्तर की ओर
तब सैलाब यादों का उमड़ आया होगा।।।।