समझ और भावनाए कहा चली गई है ?
ये कैसी बीस वी सदी है ?
जहां एक इंसान को दूसरे से खतरा है, जहां औरत को सुरक्षा देने की बात बोली जाती हैं । कौन सुरक्षा देगा , पुरुष ! जिस से उसे खतरा हैं । हम किस दिशा में जा रहे हैं क्या इस मानव समाज का नैतिक पतन हो गया है ?
कितनी निकृष्ट और सरमसार करने वाली घटना है ।
यह नारियों की पूजा करने वाला देश है । दुःख होता हैं सोच कर के भी । भावना से आंखे नम है, और लाल भी । डूब मरना चाहिए जबरदस्ती करने की एक मानव (दरिन्दा) सोच भी कैसे सकता है । ओह... तुम मानव तो नहीं हो सकते। यह कैसा इंसाफ़ है जो जो मरने के बाद मिलता है । इंसाफ़ तो जीवित इंसान के लिये होता है ना !
ये रेप और जलाकर फेंक देना ये मानव की हरकत नहीं हो सकती ये दरिंदो की हरकत है तो सजा भी दरिंदों वाली हो।
मोमबत्ती की जरूरत नहीं है सर ! सपथ की जरूरत है ।बदल ने की जरूरत है समाज, सोच और मानसिकता को ताकि समाज में मानव पैदा हो देरिंदा नहीं ताकि इन घटनाओं का दोहरान ना हो ।
सरकार जीतना कानून बनाने में ऊर्जा लगाती हैं उतना उसे सही से लागू करने में भी लगाए इस खराब कानून तन्त्र की भी जिम्मेदारी है जो हमेशा लाचारियों की चादर ओढ़े रहती है। यह तन्त्र उन दरिंदो की हिम्मत और बढ़ाता है।
बाकि ये घटनाएं होती आ रही है ये अदालते लगती आ रही हैं । बहुत कुछ बदलना चाहिए जो अौरत को भी बिना भय का संसार दे सके । विश्व की पचास प्रतिसत जनसंख्या निडर होकर खुले आकाश की स्वछन्द हवा में श्वास ले सके।
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